कुछ तो लोग कहेंगे


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दोस्तो, 
     आपने अबतक सैकड़ो बार दोस्त, रिश्तेदार या आसपड़ोस के बच्चों के शादी-ब्याह में गए होंगे। हाल मे दाखिल होने के बाद जर्नल जो बातें होती है, उसपर गौर ए फिक्र कहेंगे तो बेवजह रुके रिश्ते बन सकते है।
मेहमान- मुबारक हो।
मेजबान- शुक्रिया
मेहनत- क्या करता है दामाद / बहु ?
मेजबान- इंजीनियरिंग है।
मेहमान- माशाल्लाह बहुत खूब।

( गौर करें मेहमान ये भी नही पूछता कौन से साईट का याने - मेकॅनिकल, सिविल, इलेक्ट्रॉनिक) बस मुबारक देकर  दस्तरखान की ओर चला जाता है।
      मैंने या मुझसे आजतक किसीने ये नही पूछा की लड़का-लड़की तलाक़शुदा है क्या ?
    ना कभी एजुकेशन की सर्टिफिकेट मांगी ना उम्र जांच-पड़ताल के लिए आधार कार्ड मांगा।
    ना कभी घर खुदका है या किराए का है पुछा।
       ये सारे सवाल तो अपने खैरखाँ के भेस मे आये आस्तीन के सांप होते हैं। वही पूछते है। और हम इनकी बातों से डर कर बच्चों के निकाह मे देरी कर देते है।
     इसमे कोई शक नही के मां-बाप ही बच्चों के सही खैरखाँ होते है। और उनकी ज़िम्मेदारी बनती है वो अपने बच्चों के लिए बेहतर से बेहतर रिश्ता तलाश कर बच्चों की जिंदगी आसान और खुशहाल बनाए।
      मै हमेशा कहते आया हूं के दो-चार नालायक, नासमझ, विघ्नसंतोषी रिश्तेदार और दोस्तों के बातो मे आकर, बच्चों के रिश्ते ना टाले।
     ......कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना।
        हमे तो रोजेहश्र मे अल्लाह सुभानु व ताला क्या कहेंगे इसकी फिक्र करने की जरूरत है।
इंतेखाब फ़ैजुनिसा म.इसहाक फराश
          मॅरेज काउंसलर 
          फ़ैज मॅरेज ब्यूरो 
          9503801999