इन्तज़ार..


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किसी नज़र को तेरा इन्तज़ार......
               नही बेटा, साथ जाना नही, मामू को आपकी पसंद मालूम है। वो तुम्हें जैसा चाहिए वैसे ही कपड़े ले आएंगे। थोड़ी जिद के बाद बेटा मान गया। मां अपने बेटे मे आई तबदीली से परेशान थी। अपने अब्बा से जिद्द कर के हर ख़्वाहिश पूरी करने वाला अपना बेटा, आज कितना समजदार बन गया था।
               ये समझदारी है या हालात के साथ किया हुआ समझोता। झगड़ा मां-बाप का मगर सज़ा भुगतनी पड़ती है, बच्चों को। कमानेवाली मां हो या ना हो, हालात ऐसे ही होते है। बच्चों की तरबियत / परवरिश मे मां-बाप दोंनो का किरदार बड़ा अहम और ज़रूरी होता है।
                आप समझदार है, कम से कम अपने बच्चे के मुस्तक़बिल के लिए तो आपस मे समझोता कर लो। देखो रमज़ान का महिना चल रहा है। सच्चे दिल से दुआ करगो तो, जरूर कबूल होगी। अल्लाह ताआला दिलों के भेदो को जानने वाला और दिलों को फेरने वाला है। क्या पता उधर से भी इसी बात का इंतज़ार हो रहा होगा। आप के पहल करने से आप छोटे नही हो जायेगें, आपके दो कदम पीछे हटकर समझौता [ compromise ] कर लेने से अपनी और अपने बच्चों की ज़िन्दगी संवर सकती है।
               आपका केस पोलिस चौकी, कोर्ट, जमात या दारूल कज़ा मे चल रहा हो या शरियत या कानूनी तौर पर तलाक, खुला हुआ हो, अलग होकर कितना भी समय हो गया हो। आप दोंनो अगर एक होने की ठांन ले तो कोई भी इसे रोक नही सकता।
               दोस्तो जानवर भी अपने बच्चों और जीवन साथी की जुदाई बर्दाश्त नही कर सकता! हम तो अशरफ-उल-मखलूक है।
                इंतेखाब फराश