एक सबके लिए और सब एक के लिए


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एक सबके लिए और सब एक के लिए
      आली जनाब, आज के दौर मे मां-बाप अपने लड़की के लिए अक्सर न्यूक्लियर फ़ैमिली [ छोटा परिवार ] ढूँढ़ते है। इसके पीछे का बुनियादी मक़सद लड़की को ज्यादा कामकाज करना ना पड़े, यही होता है। मगर एक सर्वे के मुताबिक 80% तलाक इसी छोटे परिवार मे हो रहें है। और वो भी दो चार महिनों मे।
               मां-बाप बचपन से, अपने बच्चे को  खुश रखने के लिए उसकी हर छोटी-छोटी खाँहिश को पूरा करने के लिए कोशिश करते रहते है। ऐसे मां-बाप सही गलत का खयाल करते ही नही, उसकी हर जिद्द को पूरी करते रहतें है। लेकिन यही ज्यादा प्यार और ख़ुलूस बच्चों को ज़िद्दी बना देता है।
            बारहा देखा गया है, छोटे परिवार मे, कोई समझाने वाला नही, किसी का डर नही, कोई रोकटोक नही, हम करे सो कायदा। इस बात से उसके दिलो-दिमाग मे एक बात बैठ जाती है, I am always right। और जब वालिदैन कम पढ़े-लिखे हो तो सुरते हाल मज़ीद संगीन हो जाती है। ये बर्ताव लड़का-लड़की दोनों मे देखने मिलता है।
                 ऊपरी सतह पर दिखाई देनेवाला या दिखाया जानेवाला मंझर बड़ा मुतमईन करने वाला होता है। अच्छे पॅकेज की नोकरी, देखने मे भी ठीक-ठाक, सही उम्र, घरवाले भी सुलझे हुए। और क्या चाहिए? मगर अंदरूनी हकीक़त से हम बेखबर होते है। सामनेवाले के आदत-अख़्लाक़, ऊसकी सोच, अपने हमसफ़र और ज़िन्दगी को देखने का नज़रिया हम नही जान सकते। इंसान की पहचान अख़्लाक़, सफ़ात, आमाल और उसके अंदर की इंसानियत से होती है। जिस्म तो बाहरी दिखावा होता है। उसका रवैय्या तो, उसके साथ वक्त गुज़ारने और व्यावहार से होता है।
               थोड़ी-बहुत बहस भी बड़े झगड़े का सबब बनकर रिश्तों मे दरार आती है। और फौरी,  तड़का-फड़क फ़ैसला लिया जाता है। बेशक जल्दबाज़ी का फ़ैसला सैतान का होता है। मगर जब जॉइंट फैमिली में ऐसे मसले-मसाइल आते है, तब वो उसका अकेले का मसला नही होता पूरे परिवार का मसला होता है। वो सबका होता है! तब घर के बड़े बुजुर्ग आगे बढ़कर मसले को वहां के वहां समझा-बुझा कर खत्म करने की कोशिश मे लग जाते है। और रिश्तो आई कड़वाहट को मिठास मै बदल दिया जाता है।