कल्पनाविलास × जमिनी हकीक़त


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कल्पनाविलास × जमिनी हकीक़त
               दोस्तो, जैसे ही रमज़ान का महिना शुरू होता है। ज़कात, फित्रा और सदका के तरह तरह के पोष्ट और व्हिडिओ व्हायरल होने लगते है। पहले हम उस समोसावाले व्हिडिओ के बारेमे बात करेंगे।
               किसी मुआशरे के खैरख्वाह ने रमज़ान मे हर रोज बिकनेवाले समोसे का एक शहर का हिसाब लगाकर महिने मे फलां फलां करोड रुपए सिर्फ और सिर्फ समोसे पर खर्च करने वाली कौम को कोसता दिखाई दे रहा है।
                 भाई बहोत सारे मुस्लिम नौजवान सिजनेबल बिजनेस करतें है। ये उनका शौक, रूची या मजबूरी होती है। रमज़ान मे खाने-पीने के चीज़ों पर आम आदमी भी दिल खोलकर खर्च करता है। ग़ौरतलब बात ये है के, ये इस्लामिक त्यौहार है! इसमे किसी भी तरह की फुजूल खर्चि नही होती। जिसकी रोजी-रोटी समोसा बनाना और बेचना है। यही उसका कारोबार है। अल्लाह ने उसे उस हुनर से नवाज़ा है। तो वो वही करेगा ना। और इस तरह के कारोबार मे 85% मुस्लिम लोग है।
             और ये एक ठेले का हिसाब नही पुरे शहर का कुल हिसाब है। नही तो बेचारे समोसेवाले को हम करोडपति के नज़रिए से देखने लगेगे।
              लाखों करोड की जकात- कोई जब ज़कात की बात करता है, तो वो हमे एक साथ 20 करोड़ आबादी को या इनके ज़कात को एकसाथ देखकर हैरतअंगेज कर देता है। लाख देड़ लाख करोड रुपए बहोत ज़्यादा है ही। आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता है। इतने रुपए मे हम क्या कुछ नही कर सकते। मगर सचाई, असलियत या जमीनी हकीकत ये है के, हम लोंगो ने जात- बिरादरी, मसलक और फिरके को लेकर अपना अपना अकिदा और सोच के साथ अपनी अपनी अलग पहचान और ग्रुप बना लिया है। और ये कौम के रहनुमा तो सिदा 1400 साल पहले हज़रत उमर रज़ि अल्लाह अन्हु की बात करता है। ये सच है की, उन्होंने बड़ा दिलकश निज़ाम चलाया था। मगर उस वक्त के सामाजिक, कौटुंबिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, राजकीय हालात कैसे थे? और आज के हालात कैसे हैं? इस बात पर गौर व फ़िक्र की कोई बात नही करता। आज का मुसलमान जात-बिरादरी, मसलक और फिरकापरस्त बना हुआ है। बरोबर 100 साल पहले 1924 मे जो खिलाफ चळवळ खत्म हुई थी, तभी से आपसी फूट, नाइत्तेफ़ाकी  बड़ना शुर हो गई थी। लेकिन शुक्र है, अल्लाह तआला का पिछ्ले 15/20 सालों मे काफी हद तक सुधार आ रहा है। दबी दबी ही सही इत्तेफ़ाक, मिलन, संयोग की बाते हो रही है। लोग इस मसले को संजीदगी से ले रहें है। और इसपर काम भी हो रहा है।
               जब हम उँचाई से देखते है तब रास्ते मे आगे बहोत ट्राफिक नज़र आती है। आगे बढने के बाद रास्ता अपने आप मिलता है। ठीक उसी तरह हमे एक साथ पूरे भारत के मोमिनों की बात करने के बजाय, हर मोहल्ला या हर मस्जिद के हिसाब से ये ज़कात का निज़ाम देखने की ज़िम्मेदारी देते है, तो काम आसान और कामयाब होगा।
              इस काम मे हमे अमीन- ईमानदार, सच्चे, भरोसेमंद और वफ़ादार लोंगो की जरूरत होगी। ऐसे लोग ढूँढना बहोत मुश्किल नही है। आपको ताज्जुब होगा, दुनियाभर मे सिर्फ और सिर्फ 2% लोग बेईमान है, बाकी सब इमानदार और नेक है। और जब कोई बे लोस [ निस्वार्थ, Selfless ] होकर काम मुआशरे के भलाई का काम शुरूआत करता है, तब ये 2% भी अपने आप उस जगह से बर्खास्त हो जाते है।
               जब  www.faiznikah.com या रोटी बॅंक की शुरुआत की थी, तभी भी ऐसे खुदगर्ज लोग जुड़े थे। मगर जब सारा निज़ाम साफ-सुथरा और शफ़ाफ [ transparent ] हो तो, ये लोग बड़े मायूस हो जाते है। और अपना बोरिया-बिस्तर बांध कर गायब हो जाते है। मगर बेबुनियाद बदनामी करने से बाज़ नही आते। ये तो पैसा कमाने का एक धंदा है, लोंगो को भीखारी और ऐंदी बना रहे हो और ना जाने क्या क्या!
              अल-आलिम [सब जानने वाला ] को www.faiznikah.com पिछ्ले 18 साल से, और रोटी बॅंक पिछ्ले 6 सालों से लगातार मुआशरे के खैर के काम मे लगी है। पूरी तहकीक़ात के साथ 150 निराधार बेवाओ रोज तयार खाना देना और जो आ नही सकते उनको राशन किट देना। ये अल्लाह की गैबी मदत और अमल पसंद लोंगो के ताऊन से हो रहा है।