जानबूझकर कर्ज न देने वाला चोर है


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जानबूझकर कर्ज न देने वाला चोर है
         दोस्तो, अक्सर देखा गया है, जब हम किसी दोस्त, रिश्तेदार या जानपहचान वाले को, उसकी मुसीबत के वक्त पैसे देकर मदत करतें है। उस वक्त वो शख्स बड़े अज़ीज से आपका शुक्रिया अदा कर के एक वक्त तैय कर देता है, की इस तारीख तक सारे पैसे लौटा देगा। मगर तैय वक्त निकल जाने के बाद भी उधारी की कोई रकम अदा नही की जाती। आहिस्ता आहिस्ता मिलना-जुलना और बातचीत बंद हो जाती है।
         देखने से लगता है, सब ठीक ठाक है। खा-पी, घुम-घाम रहें है। हर चीज मुक्कमल अदा हो रही है।मगर हमारा कर्जा अदा नही हो रहा है।
          लेकिन दोस्तो, ये आधा सच है! इसका दुसरा पहलू कुछ इस तरह से हो सकता है। अपनी कमाई के हिसाब से, उसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जैसे तैसे चल रही थी। फिर अचानक कोई मुसीबत आ गई, और आप एक सच्चे दोस्त की तरह उसके पिछे खड़े होकर उसकी मदत की। आपकी मदत से उसका मसला [ प्रोब्लेम ] हल हुआ। कमाई तो वैसी के वैसे हि रही और बाकी मसले तो हमारी ज़िन्दगी की तरह उसको भी दिन ब दिन आते ही रहे। और हमारी तरह वो भी उसी प्रोब्लेम मे उलझकर उसे सुलझाने की कोशिश मे लगा रहा।
          आपसे बात और मुलाक़ात न करने की सबसे बड़ी वज़ह उसका ज़मीर होता है। ज़मीर की आवाज बार बार उसे ऐहसास दिलाते रहती है, इसने हमारी बुरे वक्त पर मदत की है, उसके पैसे लौटाना चाहिए, मगर हालात के आगे मजबूर वो मुँह चुकाते रहता है। और हम कहतें है, देखो कितना बेगैरत इन्सान है।
        दोस्तो, जब हम सच्चे दिल से इरादा और अदायगी की निय्यत करे, कर्ज लेनेवाले से बात कर कर्ज को एकदम छोटे छोटे किश्तों मे देना शुरू कर दे। हम खुद और परिवार के सभी लोंगो ने एक होकर ठान ले तो, अल्लाह ताआला की मदत भी मिलेगी। और हम कर्ज से निज़ात पा सकते है। सर पर कर्ज हो तो हर सुखचैन खत्म हो जाता है है। दुनिया तो बर्बाद होती ही है, साथ ही साथ आख़रत मे भी राहत नही मिलती।
        इस्लाम और हदिस मे कर्ज के बारे मे बड़ी सक्ती से बया किया गया है। इस्लाम मे सब से ज़्यादा और ऊंचे दर्जेपर शहिद का मर्तबा है, मगर दोस्तो इतना बड़ा मर्तबा होने के बावजूद उसकी तबतक मगफिरत नही होगी, जबतक उसके कर्ज की अदायगी / भुगतान न किया हो। और एक जगह अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा है :-" अगर कोई कर्ज ले और लौटाने की निय्यत ना हो। या जानबूझकर कर कर्ज की अदायगी ना करता हो तो वो विश्वासघातकी और चोरी है।"
           एक हकीक़त- एक बार कर्ज देने वाला कर्ज वापस लेना भूल सकता है, मगर कर्जदार कभी भी भूल नही पाता। उसे उसका ज़मीर / अंतरात्मा कर्जदार होने का ऐहसास दिलाते रहती है।दिलो-दिमाग मे हमेंशा कर्ज एक काँटे की तरह हरदम चुबता रहता है। अल्लाह तआला हम सब को कर्जदार होने से बचाए। आमीन