शक / वहम का इलाज


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शक / वहम का इलाज
        दोस्तो, तलाक की एक बड़ी वज़ह अपने हमसफ़र पर शक करना है। ये एक मानसिक बिमारी भी कहलाती है। इसकी शुरुआत छोटी छोटी बातों से होती है। और एकबार दिलो-दिमाग मे कोई शक का किडा वलवलाने लगे तो इन्सान रात-दिन उसी के पीछे लगा रहता है। गहरे से गहरा रिश्ता भी शक की वज़ह से खोखला बन जाता है। जब हम किसी पर शक करने लगते है तब, उसकी हर बात उसका बर्ताव, आदतों को हम आलग और दुसरे नज़रिए से देखने लगते है। आज के इस भाग-दौड़ भरे माहौल में कंपटीशन, नाउम्मीदी, हताशता, असुरक्षितता और जिस्मानी कमज़ोर के रहते  ऐतमाद / भरोसा का ऐहसास तेज़ी से खत्म हो रहा है। और हम ना चाहते हुए भी शक की बीमारी का शिकार हो जाते है।
       मिज़ाज [ स्वभाव ] ज़िद्दी बनना। किसी की भी ना सुनना, सभी से अलहदगी इख्तियार कर लेना। किसी भी हाल मे समझोता नही करना। जज़्बाती तौर पर किसी से ना जुड़ना, हांलांकि ये खुद को दुरअंदेशी और तार्किक [ समझदारी ] सोच रखने वाले समझते हैं। और ये इसका फक्र भी महसूस करते रहते है।
        कपड़े पर लगे धब्बे, परफ्यूम, इतर की खुशब, फोन पर वक्त बेवक्त बात करना, अकेले बाहर जाना, देरी से आना, रास्ते मे किसी से हंस कर बात करना, हमे इग्नोर किया जा रहा है ये ऐहसास, भावना बार बार आना। इस तरह के बातों पर खयाली और मनघढंत कहानी बनाकर उस सोच को सच मानकर, पहले बहस से होते होते बड़े झगड़े की वज़ह बन जाती है।
            वहम का इलाज हकीम लुक़्मान के पास भी नहीं है। ये एक कहावत के तौर पर ठीक है, मगर हम खुद, परिवार और हमारे खैरख्वाह की मदत से बहुत हद तक शक की बीमारी से छुटकारा पा सकतें है।
      सब से पहले खुलकर बात करे। अपने और पार्टनर के दिल की हालात और सोच समझना बहोत जरूरी है। तभी बात आगे बढ़ सकती है। बात करते वक्त इस बात को गाँठ बाँध लेना चाहिए के, हम खुद और बाकी सब इन्सान हैं। कोई फ़रिश्ता नही है। ग़लतियाँ इन्सान से ही हो होती है।
          नासमझी और अंजाने मे हुई गलतियों को साफतौर पर बयां करे। और सामने वाले की भी ज़िम्मेदारी बनती है। उसे माफ करें। याद रहे हम मुसलमान है। और अल्लाह तआला कुरआन मजिद मे साफतौर पर बयान करते है, "बुराई का बदला वैसी ही बुराई है। लेकिन जो माफ कर दे और सुधार करे तो उसका बदला अल्लाह के ज़िम्मे है। निश्चय ही वह ज़ालिमों को पसन्द नहीं करता।" [ सूरा शूरा 42:43 ]
        इसमे एक बड़ी दिक्कत ये होती है के, हमे लगता ही नही की हमने कोई गलती की है, फिर माफी कैसी, मगर ये हमेंशा याद रहे की किसी भी रिश्ते की बुनियाद सिर्फ और सिर्फ एतमाद / भरोसे पर टिकी होती है। जब हम किसी का भरोसा जित जाते है, तभी रिश्ता मजबूत और टिकाऊ बनते हैं।
           एक दूसरे से बातें छिपाना बंद कर दें। कोई दो लोग जब एक रिश्ते में आगे बढ़ते हैं, तो उनके लिए इस बात को समझना बेहद ज़रूरी है कि खुशहाल और मजबूत रिश्ते के लिए हर छोटी बात को शेयर करें। कई बार हमें कुछ चीजें छोटी लगती हैं, मगर आपके पार्टनर की सलाह लेने से उनका आपके लिए एतमाद, भरोसा बढ़ने लगता है। वे इस बात को महसूस करते है कि आप उनकी कितनी परवाह करती है। रिश्मों की बॉडिंग मज़बूत होने लगती है। ऐसे में एक दूसरे से बातों को छिपाना बंद कर दें और खुलकर हर चीज़ में अपने पार्टनर के फ़ैसले और मनसूबा [ इरादा ] का इस्तकबाल करे।
           देर से घर न लौटें। बारहा ऐसा होता है, जब देर तक किसी न किसी अर्जंट काम की वजह से ऑफिस या कारोबार में हर रोज से ज़्यादा वक्त लगता है। ऐसे में पार्टनर का अंडरस्टैण्डिंग होना ज़रूरी है। अगर आपका पार्टनर आपके लेट आने से आप पर शक करने लगा है, तो उस डाऊट को दूर करने के ज़िम्मेदारी आपकी है। समय से घर आएं और पार्टनर को ऐहमियत दें। उससे अपनी दिनभर की मसरूफ़ियत की वज़ह बताए, ताकि वो आपकी मसले को समझ पाए। कई बार अकेले ही हर चीज़ को हैंडल करके की जुस्तजू में हम रिश्तों को निभाने में पीछे रह जाते हैं। घर समय पर आकर पार्टनर के साथ कुछ वक्त बिताने से शक अपनेआप दूर होने लगेगी।
           एक साथ आउटिंग पर जाएं। जब आप अकेले या दोस्तों के साथ घूमने फिरने के लिए निकलते हैं, तो पार्टनर का शक करना लाज़मी है। दोस्तों के साथ पार्टीज़ में जाने के अलावा पार्टनर को भी समय दें। एक साथ आउटिंग प्लान करें। इससे एक दूसरे के मन में उठने वाले सवाल और शक अपने आप दूर होने लगेंगे। साथ ही अपने साथी के नज़रिए को पहचाना और साच को जानना आसान होगा।
             रिश्तों का अधकचरापन और भरोसा न होना, रिश्ते को बिखेर देता है। हम हमारे लिए क्या ऑप्शन लेते है, उससे ज़्यादा कौनसा ऑप्शन छोड़तें है। इस बात पर हमारा फ्युचर बनता है। अपनी जिद, बेवकूफ़ी, नासमझी और जल्दबाज़ी की बड़ी किमत चुकाना पडता है। अक्सर ज़िन्दगी का ख़ालीपन हमे माजी [ पास्ट ] की याद दिलाकर ये सोचने पर मजबूर कर देता है की, वो सब लोग वो मकान वो दिन बेहतर थे। हमारे फ़ैसले गलत और जल्दबाज़ी मे लिए गए थे।