ज़मीर की आवाज़


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ज़मीर की आवाज़
          दोस्तो, मै हमेंशा कहता आ रहा हूँ के, हमे जो पसंद करता है। उसी से निकाह करना चाहिए ना की हम जिसे पसंद करते है उसे।
         शादी-ब्याह का एहम तकाज़ा है, प्यार, मोहब्बत, ख़ुलूस, अपनापन, ऐतबार, फ़िक्र और हर तरह की इश्तिराक़ [ shearing ] इन्ही बातो से रिश्ते मजबूत और टिकाऊ बनते है। मगर ये फौरी तौर पर [ instant ] नही होता। की आज निकाह हुआ तो कल से सब मिल जाएगा। इसके लिए वक्त लगता है।
          आजका इंसान बड़ा बेसब्रा है, और किसी ने क्या खूब कहा है, बेसबर आदमी जुबान भी जला लेता है और खाने का मज़ा भी नही ले पाता।
         सच कहें तो आजके पेरेंट्स अपना फर्ज, ज़िम्मेदारी और ज़मीनी हकीक़त भूल बैठें है। आज मियां-बीवी से ज्यादा उतावलापन मां-बाप मे देखने मिल रहा है। ये माना के मां-बाप ही सही खैरख्वाह होते है, मगर आप भी अभी बच्चे तो नही रहे आप भी अपना अच्छा-बुरा समज सकते है। जल्दबाज़ी मे कोई भी फ़ैसला लेने से पहले एक बार अपने ज़मीर की आवाज सुनकर फैसला ले।