.......दोगलापन


...

.......दोगलापन
       आऐ मेहमान जब बच्चों को पैसे देने की कोशिश करतें है, तो हम बच्चों को डाटकर मना करते है। इन्ही बच्चों के शादी-ब्याह के वक्त हम बेर्शम भीखारी की तरह, जोड़े की रकम, बड़े हाॅल और अच्छे खान-पान की भीक मांगना अपना हक्क क्यों समजते है।
..........अरमान
        मर्द बच्चे के अरमान मा-बाप उठाए या बच्चा खुद, अपने अरमान, खाँहिश लड़की के मां-बाप के पैसों से पुरे करना, नामर्द की निशानी ही तो है।
..........शिद्दत
         हर जानदार को भुक-प्यास के अलावा जिस्मानी भुक होती है।  जिस्मानी भुक बड़ी बेर्शम और निडर होती है। जब ज़िम्मेदारों ने सही वक्त पर अपनी ज़िम्मेदारी पूरी ना की तो चोरी-चुपके इस भुक को पुरा किया जाता है।
..........सामने का बच्चा
       जब रिश्तेदारी मे रिश्ते की बात चलती है तब हमारे दिलो-दिमाग मे एक खयाल आता है। अरे इसे तो मै बचपन से देखता आया हूँ, ये तो हमारे सामने का बच्चा है। पर इस बात पर ग़ौरतलब करने की बात है। कोई भी अपने बड़े-बुजूर्ग की मौजदूगी का ऐतराम करता ही है। बद-पिछे की तहकीक़ात जरूरी है।