थू.....हमारी गंदी सोच पर
जब उम्र 40 से 60 साल वाला विडो या तलाकशुदा फिर से शादी की तमन्ना कर लेते है तो, अक्सर रजिस्ट्रेशन करने दुर का रिश्तेदार या दोस्त-अहबाब आते है। घरवाले कभी-कभार आते है, खासकर अब्बा की शादी कराने के लिए लड़की हमेंशा पहल करती है। इनकी डिमांड बहोत ज़्यादा नही होती। सब से पहली और खास डिमांड होती है, 35 से 40 साल के बीच की कुँवारी हो, गर विधवा या तलाकशुदा हो तो बिना बच्चे की, दीनदार, दुबली-पतली और हो सके तो मालदार हो। जबके इनके खुद के 2/3 बच्चे मौजूद है।
अरे बेवक़ूफ़ इन्सान पहले तो इस उम्र की लड़की कुँवारी क्योंकर रहेगी? [ कुछ नादान जिन्हें अच्छे का सही डेफिनेशन मालूम नही ऐसे बैठे है, अच्छे के इंतजार मे! ] और जब वो तलाकशुदा या विधवा हो तो क्या वो बाल-बच्चे वाली नही होगी।
कहते है बच्चेवाली हो तो आगे चलकर प्रॉपर्टी को लेकर प्रोब्लेम आते है, उसकी तवज्जो शौहर से ज्यादा अपने बच्चों मे होती है। इस तरह के बेतुके बहाने, सबब दिए जाते है। हालाँकि इस्लाम में "गोद लिए गए" बच्चे को विरासत के अधिकार या किसी का नाम देने की मनाही है। तो फिर किस बात का खौफ़ है।
अनाथों की किफ़ालत [ भरणपोषण ] करना और बुजुर्गों की देखभाल करना- सदक़ा-ए-जारिया है, याने इसका सबाब हमे मरने के बाद भी मिलता रहेगा। एक हदीस मे आया है, यतिम के सर पर हाथ फेरने से उसके सर के बाल बराबर नेकियाँ मिलती है।
वैसे भी भारतीय मुसलमान की सोच के क्या कहने, किसी भी उम्र मे विधवा अपने बच्चों को छोड़कर शादी करना अय्याशी समझी जाती है। इसी लोकनींदा से कितने ही औरते दुबारा निकाह मे आने से कतराती है।
और भाई, सौ बात की एक बात, आप अपने खुशी और सहुलियत के लिए निकाह कर रहे हो ना, जरा सोचो जब वो अपने बच्चों के बगैर खुश कैसे रह सकती है। और अगर वो खुश नही है, तो आप कैसे खुश रह सकते हो।