पेरेंट्स को घुस्सा क्यूँ आता है
दोस्तो, आज उन पेरेंट्स की बात करेंगे, जो दोंनो यांने मां-बाप 30/35 सालों से जाॅब कर रहें है। ये दोंनो बड़ी मेहनत-मशक्कत और इमानदारी से अपने बच्चों के फ्युचर के लिए हर मौक़े मोहिय्या करते है, और माहोल बनाते है। ये दोंनो भी अपने वक्त अपने फ्युचर के लिए बड़े सिरीयस थे। इसी के चलते वो अपने खानदान और आसपड़ोस के मुकाबिल वो खुद को और अपने फॅमिली को एक बेहतर और आला बनाने मे कामयाब होते है। इन की ये क़ामयाबी का राज़ ये अपनी सोच और डिसिप्लिन को समजते है। बच्चों को बचपन से हम औरों से बेहतर और अलग है, ये दिमाग मे डाल दिया जाता है। खानदान और आसपड़ोस के बच्चों से ज्यादा और किमती भौतिक सुख-सुविधा के साधन की होनेवाली आसानी से उपलब्धता, इनके आला और अलग होने को पुष्टी करते रहती है।
जब बच्चे पढ़-लिखकर काबिल बन जाते है, तो ये अपने बच्चों के शादी के लिए अपने बराबरी, अपने स्टेटस का परिवार ढूंढते रहतें है। इसमे कोई बुराई भी नही। और ये होना भी चाहिए। और एक बात रिश्ता यदी अपने जैसा एरियात, माहोल, क्लास और कल्चर एकसमान [ Equality ] हो तो रिश्ते निभाने मे आसानी होती है।
जहां की तमाम अज़ीम खूबियाँ सिर्फ हमारे पास ही है, हम जिधर चाहे उधर रिश्ता कर सकते है। हमे कोई ना बोल हि नही सकता। इस भ्रम मे जब रिश्ते की तलाशी शुरू करते है। तब बायोडाटा के हिसाब से सभी चीजे मिलने के बावजूद, इन्हे कोई रिश्ता पसंद ही नही आता। तअस्सुब, बदगुमानी [ पूर्वाग्रह ] के शिकार, इन्हे औरों के सिर्फ ख़ामियां हि दिखाई देते है। बाजार से जैसे वस्तु ख़रीदते वक्त दुसरी कंपने के प्रोडक्ट से कंपेयर करते है, ठीक उसी तरह कंपेयर किया जाता है। ये कोई ,किसी भी बात मे समझोता [ Compromise ] करने के मूड़ मे नही रहते।
बड़ी मुश्किल से जो पसंद आता है, वो भी इन्ही की तरह होते है। उनकी सोच भी ऐसे हि होती है। उन्हे भी इनमे हजारों ख़ामियां नज़र आती है। और उनके तरफ से सीधा इन्कार आ जाता है। आजतक कभी भी किसी भी फील्ड मे इन्कार कभी सुना हि ना हो, उसे घुस्सा आना लाजिम है।
कुदरत का निजाम है की, खुद के मुह की बदबू खुद को कभी महसुस नही होती। उसी तरह अपने अंदर की ख़ामियां हमे नही दिखाई देती। इसका सारा इल्जाम वो सामने वाले पर लगाते है। साथ ही साथ अल्लाह तआला को ही कोसते रहते है। माना के अल्लाह तआला के मर्जी के बगैर कुछ नही होता। मगर हम ये क्यों भूल जाते है की, "जैसे आमाल वैसे फ़ैसले" ये भी तो उसी का फर्मान है।