रिश्तेदार या दियासलाई
दोस्तो, आज faiznikah.com के दो किस्सों की बात करेंगे।
1] दो साल पहले की बात है, लड़का- उम्र 35, बीवी का इंतेक़ाल हुआ, दो बच्चे, खुदका घर, अच्छी नोकरी और कोई बैड हैबिट नही। अपने ज़िन्दगी का हमसफ़र और बच्चों को मां का साया मिले, यही खाँहिश।
लड़की 35 साल की, घरमे सिर्फ मां, अब्बा का इंतेक़ाल हुआ है। मां और लड़की दुसरों के घर मे घरकाम करके अपना गुज़ारा करते है। कहने को तो नज़दीकी बहोत अमिर और इज्ज़तदार रिश्तेदार है, मगर गरिबी मे कोई, रिश्तेदार आसपास नही भटकता। कई सालों से मेलमिलाप और बातचीत नही हुई। मगर जब शादी-ब्याह की बात आती है, तो दुनिया के रस्मों-रिवाज के हिसाब से बातचीत मे बुलाना ही पड़ता है।
ऐसे अमिर और इज्ज़तदार रिश्तेदार अक्सर दिए वक्त से दो-तीन घंटे लेट आते है। कहीं कुछ देना ना पड़े इस लिए वो हमेशा डिफेंस मोड़ मे आते है। और हुआ भी ऐसा ही। जब के लड़का, लड़की और दोनो घरवालों को हर चीज पसंद और मंजूर है, ये बात बताने के बावजूद रिश्तेदार ने बच्चों को मदरसे मे भेजने की बात निकाल कर माहौल खराब कर दिया। काफी बहेस के बाद ऐलान कर दिया के ये रिश्ता होगा तो, इस के बाद इनके कोई भी किसीभी कामकाज मे नही आने वाले। और मशवरे से पांव पटकते निकल गए। रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया। मगर अल्लाह तआला ने www.faiznikah.com की टीम को सिर्फ और सिर्फ जोड़ करने के लिए ही बनाया है। टीम को ये किस्सा नया ना था। टीम के ज़िम्मेदारों ने पहल की और आज दो साल हुए। मियां-बीवी और बच्चे खुशहाल ज़िन्दगी बसर कर रहें है।
2] अपनी या अपने रिश्तेदार या दोस्त की दुष्मनी की खातिर हो रहे अच्छे रिश्ते भी तोड़कर हुयी जीत का मज़ा लेने वाले रिश्तेदार भी हर खानदान मे पाये जाते हैं। जब दो परिवार सोलों से एक-दुसरे को जानते, पहचानतें है, बच्चों ने एक-दुसरे को पंसद किया, समदी-समदन के दिल जुड़े। और रिश्ता पक्का होने जा हि रहा था, तब लड़के के बड़े अब्बा जो के एक साहिब-ए-हैसिय्यत और दीन की अच्छी-खासी जानकारी रखने वाले है। दो दिनबाद डिक्लेअर कर दिया के, यदी इधर रिश्ता तैय होता है, तो शादी मे नहीं आऐंगे साथ ही साथ सगे भाई से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर देंगे। तहकीक़ात से पता चला के उनका साला और लड़की के अब्बा एक ही एनजीओ मे काम करतें है। सामाजिक काम करने वाली ये संस्था मे कुछ अनबन हो गई, एक एनजीओ मे दो ग्रुप बन गए, और लड़की के अब्बा विरोधी ग्रुप मे है।
अस्तग़फिरुल्लाह, ये हम कहां आ गए है। जब की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने साफतौर पर जोड़ने वालो के लिए जन्नत की बशारत [ ख़ुशख़बरी ] की है, याने इसका सीधा मतलब होता है कि तोड़ने वाले को जहन्नुम तैय है।
मै हमेंशा से कहते आ रहा हूँ की, सिर्फ और सिर्फ मा-बाप ही बच्चों के सच्चे खैरखाँ होते है। बेलौस मोहब्बत का परचम हमेंशा मा-बाप के हाथों मे रहा है। मै ये नही कहता के सभी रिश्तेदार दियासलाई का काम करते है। इसमे कुछ अपवाद [ Exception ] भी होते है। कुछ रिश्तेदारों मे अपनों के लिए बड़ा ख़ुलूस, मोहब्बत और हमदर्दी देखी जाती है। ऐसे ही नेक और अमल पसंद लोगों की वजह से दुनिया का निजाम चल रही है।
या अल्लाह हमे एक और नेक बना