कुत्ते को घी हजम नहीं होता


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कुत्ते को घी हजम नहीं होता
            बहोत दिनों पहले एक कहानी पड़ी थी, एक राजा-रानी अपने लिए एक होनहार बहु ढूंढ रहे थे। एक दिन राजा-रानी शिकार पर गये, और उधर उन्हें देखा, एक आदिवासी लड़की सुखी लकड़ियों इकठ्ठे कर रही थी। पेड के उपर चढ़कर सुखी टहनी तोड़कर निछे फेकती, और खुद धड़ाम से कुद जाती। नाक नक्श एकदम सही और सेहतमंद, राजा-रानी एकदम खुश हुए। मन ही मन उसे अपनी बहु कबूल कर लिया। फिर उस लड़की के मां-बाप के इजाज़त से बड़ी धूमधाम से अपने लड़के के साथ शादी कर दी। सब बड़े खुश थे। मगर महिने दो महिने मे ही बहु कमज़ोर और मुरझाए सी दिखने लगी। बड़े डाँक्टर के चेकअप के बाद भी बीमारी पकड़ मे नही आरही थी। राजा-रानी के साथ सभी परेशान थे। सबकी समझ के बाहर था की, हर ऐशो-आराम, सुकून और खान-पान के रहते। बहु की सेहत बिगड़ती जा रही थी।
            शहर मे एलान किया गया। जो कोई राजा के बहु का इलाज कर उसे ठिक करेगा, उससे सन्मानित कर बड़ा इनाम दिया जायेगा। मुल्क के बड़े बड़े हकीम, डाँक्टर, वैद्य और दानिशमंद इनाम और सन्नमान के चक्कर में बड़ी कोशिश की मगर बहु के सेहत पर कोई अच्छा असर ना हुआ।
             एक दिन एक बुढ़ा दरबार मे हाज़िर हुआ, और कहने लगा " मैंने आपकी बहु के बारे मे सुना है। उसकी सभी मालूमात ली है। मै दावे के साथ कहूंगा के मै आपके बहु को 20/25 दिनों मे पूरी तरह से ठीकठाक कर दुंगा। मुझे आप के महेल के पास वाला विरान पडा खंडहर चाहिए। और कोई रोकटोक नही होनी चाहिए। राजाने हामी भर दी।
             तिन चार दिनों के बाद, बुढ़ा सुबह सवेरे दरबार मे हाज़िर होकर, बहु को साथ ले गया। और शाम महेल मे वापस ले आया। यही सिलसिला 15 दिन तक चलता रहा। और चमत्कार की तरह बहु की सेहत अच्छी होते गई। सारे हैरान-परेशान थे की ऐसी कौन सी दवा देदी जो बहु सेहतमंद और ख़ुशहाल नज़र आ रही है।
           जैसे एलान किया था, राजाने उस बुढ़े को सन्मानित कर बहुत सारा धन दिया। और पूछा महाशय, आप महान है। क्या मै जान सकता हूँ, के आपने कौन सी दवा खंडहर के अंदर रख्की जो मेरी बहु की लाइलाज बिमारी ठिक हो गई। आपको तो हमेशा खंडहर के बाहर ही देखा गया है।"
            बुढ़े का जवाब "कुछ नही महाराज, मैने पहले दिन उस खंडहर के अंदर के पेड़-पौधे, उँचे टूटे मीनारों और कमानों मे रोटियाँ, खाने के कुछ सामान और कुछ कच्चे पक्के फल डाल रख्के। फिर दो चार दिन जब खाना बासी हुआ, तब आपकी बहु को उस खंडहर के अंदर छोड़ दिया। नतीजा आपके सामने है।"
          कहानी सच हो या मनघढंत, मगर ज़िन्दगी की हकीक़त बयां करती है। हम बचपन से जिस माहौल मे बड़े हुए, वही हमे सही लगता है और पसंद आता है। वही माहौल हमे खुशहाल रखने मे कारगर साबित होता है।
        आज के दौर मे सिर्फ चेहरे की खूबसूरती देखकर रिश्ते हो रहें है। और जल्द ही बिखर रहें है। हमारे घर का माहौल, खान-पान, इलाका, ऐरिया, तौर-तरीके क्या है, पहले इस बात पर गौर करना होगा। और समाने वालों का यही सब बारीकी से मुशाहिदा [ Observation ] करने के बाद ही शौहर, बीवी, दामाद या बहु का इंतेखाब [ Selection ] करने से आगे की ज़िन्दगी खुशहाल होगी।
            इन सब बातों मे मां-बाप और बच्चों के आदत-अख़्लाक़ ही बढ़ी अहम कड़ी होती है। और ये आदत-अख़्लाक़ पर अमीरी गरिबी का कोई असर नही होता। बड़े और बच्चे समजदार, अच्छे अख़्लाक़, किरदारवाले और सही सोच रखने वाले होंगे तो वो गरीब हो या अमिर, कोई भी तबके से ताल्लुक रखते हो, नये माहौल मे अपने आप को जल्द ढालकर अपना और अपनों की ज़िन्दगी खुशहाल बना सकते है।
            एक बात मैं हमेंशा कहता आया हूँ की, सही सोच और अच्छे अख़्लाक़ पढ़ाई पर निर्भर नही करते। पढ़ाई से सिर्फ चीज़ों के नाम बदल जाते है। फितरत और आदतें नही।
            पिछ्ले दिनों जलसे के दौरान एक साहिब-ए-हैसिय्यतने [ मालदार ] बड़ी अजब बात कही, भाई हमारे घर मे खान-पान पर कोई रोकटोक नही है। 15 दिन मे एकबार पाव किलो गोश्त लाता हूँ, जितना खाना चाहते हो उतना खाओ कहता हूँ। अब ऐसे घर मे आम मुस्लिम बच्चे तो परेशान हो जाएंगे।