तलाक और ख़ुला- बुनियादी फर्क


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 दोस्तो, शादी के बाद जब अनबन हो जाती है, तब हमारे सामने, मियां-बीवी के अलग होने के दो रास्ते होते है। एक तलाक और दुसरा ख़ुला। दोनो तरफ से यदी ये शरीअत के दायरे मे रहकर करने से वक्त, इज्जत, पैसा की हिफाज़त तो होती ही है, साथ साथ शारीरिक और मानसिक मनस्ताप से भी बचाया जा सकता है।
           तलाक की बात कहें तो हमारे सामने तीन तलाक की बात आती है। पहले वक्त दिया गया तलाक शौहर 1 बार बोले या 1000 बार वो एक ही गिना जाता है। [ 1 वक्त मे 3 बार तलाक बोलने से तलाक होता ही नही ] इस का वक्त 3 महिने का है। इस दौरान मियां-बीवी एक ही छत के निछे रह सकते है, और इस दौरान दोंनो मे सुलह हो जाए और हमबिस्तरी हो तो वो दिया हुआ तलाक अपनेआप रद्द हो जाता है। हां गर कोई बातचीत नहो, शारीरिक संबंध ना हो, और शौहर अपनी बात पर अडा हो तो वो तीन महिने के बाद 2 सरा तलाक दे, तो फिर मियां-बीवी एक दूसरे के लिए हराम हो जाते है। इस दौरान यांने 3 सरे तलाक से पहले फिर इन दोनो मे सुलह हो जाती है। तो नये महेर के साथ निकाह पढाना फर्ज बन जाता है। इस मे हलाला की कोई जरूरत, नही।
            हलाला- तीन तलाक के बाद मियां-बीवी में सुलह हो जाने पर भी वे एक साथ नहीं रह सकते. एक साथ रहने के लिए बीवी को किसी दूसरे मर्द से शादी कर हमबिस्तरी/ शारीरिक संबंध बनाने होते हैं, और फिर यदि वो 'खुला' या तलाक़ के ज़रिए अलग हो जाने के बाद तो वो अपने पहले शौहर से दोबारा शादी कर सकती है. इसी को हलाला कहा जाता है।    
   [ हलाला एक प्रथा है। कुरआन मजिद मे इसका कहीं भी जिक्र नही आया है]
           ख़ुला- बीवी जब अपनी मर्जी से शौहर से अलग हो जाती हो, तब उसे ख़ुला कहा जाता है। इसमे उसे अपने शौहर के साथ साथ महेर को भी छोड़कर अलग होना पढता है। मगर वो जब चाहे अपने शौहर की मर्जी से वापस उसी शौहर और निकाह के साथ वापस आ सकती है। इस मे कोई शर्त नही।
           जल्दबाज़ और नासमझ फैसले आगे चलकर अक्सर खौफनाक और मुसीबत साबित होते ही है। तलाक / ख़ुला होने के बाद समाज, दोस्त-अहबाब और रिश्तेदारों का कुछ वक्त का तमाशा-ए-अहल-ए-करम तो देख ही लिया होगा। अब फैसला आप ही को करना है। वक्त रहते संभालने मे भलाई है। अफसोस, पश्चाताप के आँसू हर दूरी मिटा देते है।
            मेरी राय मे सिर्फ और सिर्फ जान का ख़तरा हो तो ही, तलाक या ख़ुला लेना चाहिए।  वरना हर बात बातचीत से हलहो सकती है।
             ख़ुला मे वापस उसी शौहर के साथ उसी निकाह के साथ उसी महेर के साथ, पुरानी गलतियों और खामियों को नजरअंदाज करके, हसते-खेलते ज़िन्दगी गुज़रना सही है या फिर नये के साथ नया एक्सपेरिमेंट करना अक्लमंद है?