बुलाया तो तकलीफ ना बुलाया तो कयामत


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आज जो आपको बताने जा रहा हूँ, वो किसी एक वक्त, एक जगह या एक रिश्ते का किस्सा नही। ये हमे अक्सर देखने मिलता है। ये उन बच्चों के रिश्ता तैय करने के वक्त होता है, जिन बच्चों के मां-बाप दोंनो हयात ना हो, या सिर्फ़ इनमे से कोई एक हयात हो। उस वक्त कोई जिम्मेदारी से बात करने के लिए, वो अपने क़रीबी को बुलाकर बैठक मे  बिठा देते है। और हां जब सिर्फ मां हयात हो तब इनकी अहमियत और जरूरत और बढ़ जाती है।
          कुछ अमल पसंद लोग भी है, जो अपनी ज़िम्मेदारियों को बड़े बेहतरीन तरह से निभा रहें है।
             14/15 सालों मे पेश आये हकिकी किस्सो का मुआयना [अवलोकन] करने से कुछ बातों सामने आयी वो आज आपके सामने रख रहा हुं।
     1] ये जिम्मेदार कभी भी तैय वक्त पर नही आते। आधाएक घंटा देरी से आते है। आते ही अपना बिजी शुडूल बताने मे और वक्त बर्बाद करने के वो हकदार बन जाते है। बाज़ मर्तबा आते ही नही। [ तुम बातचीत शुरू करो, मै अभी पहुंचता हुं। ये डायलॉग अक्सर सुनने मिलता है। ]
     2] इनको मौके की नज़ाकत का कोई अहसास नही होता। ना सर ना पैर के सवालात पूछे जातें है। एक ही सवाल थोड़े थोड़े देर के बाद पूछना, इसका मतलब इस बैठक मे आप का तवज्जोह नही है।
     3] इनको लगता है, अपनी और अपने बच्चों के कामयाबी के क़िस्से सुनाने की सबसे बड़ीया यही जगह और वक्त यही है।
     4]  लड़का/लड़की कोई भी फील्ड से हो, उस सब्जेक्ट मे ये मास्टर के तौर पर बात करतें है।
     5] इनके पास रिश्तों मे धोखाधड़ी के दर्जनभर किस्से होते है।
     6] दो दिलों को, दो खानदानों को जोड़ने की मिटिंग है, इस बात को नजरअंदाज कर, ये एक बिजनेस मिटिंग है। इस तरह फायदे-नुकसान की बातें करते रहते है।
     7] मिटिंग मे आने से पहले, आपका फोन तो नही उठा रहे थे, अब मिटिंग शुरू होते ही हर फोन उठाकर जोर जोर से बातें कि जाती है।
           और भी बहोत बेफ़िज़ूल और बेतुके बातें होती है। सिवाय रिश्ता जोड़ने के।  
           इन जिम्मेदारों के दिलो-दिमाग मे एक सवाल बैठक खत्म होने तक उठता रहता है। अबतक किसीभीव बड़े काम और फ़ैसले के वक्त नही बुलाया! अब क्या जरूरत आयी ? अब ही क्यों बुलाया ?
          विडो भाईओ और ख़ासकर विधवा बहनों से गुजारिश करूगा, की आप हि इन बच्चों के सच्चे खैरखाँ है। ये भी सही है, की इनको बुलाना आपकी मजबूरी होती है।दुनियादारी के हिसाब से इन जिम्मेदारों को बुलाना ही पढ़ता है।
           लेकिन बराय मेहरबानी डिसीजन अपने हाथ मे रखकर ही बातचीत सुरू करें। सामने वाले का कॉन्टेक्ट नंबर किसी और को देना, बेवकूफ़ी होगी। कोई और जो भी हो, वो अपनी सहुलियत और अपने हिसाब से बात करेगा। रिश्ता तुट जाए या नाराज होकर लौट जाए, इस बात से इनका कोई नुकसान नही होता, नाही कोई सरोकार होता है।
          जो बच्चे यतिम है। वो होनेवाले रिश्तेदारों से खुल कर बात करे। अपने कामकाज की जगह जिस तरह से बात करतें है, ठीक उसी तरह। आप भी पढ़े-लिखे हो, समझदार हो। अपना भला-बुरा जानते है। आपकी वो उम्र नही रही, जिस उम्र मे सिर्फ बातों से फंसाया जाए। वो जमाना कबका गुज़र गया। लड़की / लड़का खामोश रहें, और सब बातें करें।