सुपुर्दे खाक होने से पहले....
दोस्तो, हर मां-बाप की खाँहिश यही होती है की, अपने बच्चों की ज़िन्दगी आबाद और खुशहाल रहे। बिना कोई जाती फायदे के वो हर काम करतें है। पैदाइश से लेकर अपनी आख़री सांस तक सिर्फ और सिर्फ बच्चों के मुस्तक़बिल और ख़ुशहाली के फिक्रमंद रहते है। बच्चों के दिल की बात, बिना बताए समझने की एक अजब खूबी अल्लाह ताला ने हर मां-बाप डाल रक्खी है।
बच्चें जब शादी-ब्याह के लायक हो जाते है, तब घर-परिवार मे मशवरा, बातचीत के दौरान उन्हे पूंछने पर शर्म के रहते अक्सर मना किया जाता है। [ भले दिल मे लड्डू फूटे ]
सिर्फ मां-बाप ही इनकी ना का मतलब बख़ूबी जानते है। लाख मना करने के बावज़ूद शादी करने पर ज़ोर देकर अपना फर्ज अदा करने की कोशिश करते रहते है। बच्चों की नाराज़गी का कोई खौफ उनपर असर नही करता।
खुदा ना खास्ता गर दोंनो मे से एक या दोनो का बच्चों का निकाह करने से पहले इन्तेकाल होता है, तब की सुरत ए हालात बड़े खतरनाक बन जाते है।
ये हकीक़त है, मौत का एक दिन मुअय्यन / तैय है। पर कब, किसे और कहाँ से रुखसत होना है कोई नही जानता।
एक कड़वा सच
मां-बाप जितनी जोर-जबरदस्ती करतें / कर सकतें है, उतना दुनिया का कोई रिश्तेदार करता नही या कर सकाता नही।