जबरदस्ती नहीं
हाजरीन,
आजकल शादी के हफ़्ते दो हफ़्ते में तलाक़ / खुला हो रहें हैं। तहकीकात से एक बड़ी वज़ह पता चली हमसफ़र पसंद नहीं है।
शादी एक दो दिनों तैय नहीं होती। इसका बड़ा प्रोसीजर होता है। लडक़ी/लड़का देखने से लेकर निकाह के दिन तक 3/4 महीने निकल जाते ही हैं।
इसी दौरान हमारी माँ-बाप, भाई -बहन, करीब रिश्तेदार या दोस्तों की जिम्मेदारी बनती है कि हम लड़का/ लडक़ी की को सीधा पूछें कि आपको ये रिश्ता मंज़ूर है या नहीं।
बच्चे इंकार करें तो अपने इज्ज़त का इशू ना बनाकर जबरदस्ती ना करें, इंकार की वज़ह की तफ़तीश करें, और बच्चों को कॉन्फिडेंस में लेकर सही फैसला लिया जाना चाहिए।
बच्चों, याद रहे अपने मां-बाप ही हमारे सच्चे खैरखाँ है। उनका ये फैसला सिर्फ और सिर्फ हमारी खुशी और खैरीअत के लिए हैं। और हम मां-बाप का भी फ़र्ज बनता है कि अपनी औलाद बात को संजीदगी के साथ सुनें।
कुछ फिजूल की बातें से परहेज करें।
मेरी बहन-भाई, दोस्त का रिश्ता है। मैंने जुबांन दी है। इनकार से मेरी नाक कट जायेगी। कहीं मुँह दिखाने के लायक नहीं रहेगा।
ऐसे इमोशनल बातों से बच्चे वक्ती तैर पर मान भी जायेंगे, पर जब मौका मिलते ही गज़ब खड़ा कर देते हैं। ज़ोर जबरदस्ती से रिश्ता हो भी जाए तो टिकने की उम्मीद ना के बराबर होती है।
ये तमाशा चार लोगों और चार दिवारों के बिच होना बेहतर है या शादी के बाद सरे-आम ये तैय हमें करना है। बच्चे ख़ुशी ख़ुशी अपनी जिंदगी गुजारे यही हमारी मनशा है तो अपने आंखो पर लगी ईगो की पट्टी हटाकर उनकी पसंद ना पसंद देखने की जरूरत है।
सबसे अहम बात इस्लाम में कहीं पर भी शादी के लिए मां बाप की पसंद ना पसंद का कोई जिक्र नहीं आया है। बस मियाँ-बीबी राज़ी हो यही शर्त रखी है।