इज़हार ए हैसियत
हमारा सब कुछ तो बच्चों के लिए हि तो है, किस के लिए कमाया है? अब अरमान नही पूरे करेंगे तो कब? एक ही औलाद है और ना जाने क्या क्या... ऐसी बहोत सी बातें आपने सुनी-कही होंगी। बच्चोंके शादी-ब्याह के मौक़े पर।
और इसमे हमे कुछ गलत नज़र नही आता, भारतीय समाज व्यवस्था की गहरी छाप जो हमपर पड़ी जो है।
शुक्र है अल्लाह सुभान व ताला का जिसने हमे साहेब ए हैसियत बनाया। ये भी सही है की, हमारे हैसियत के हिसाब से हमारा रहन-सहन हो।
मगर क्या हमे हमारी " इज़हार ए हैसियत " दिखाने के लिए एक ही शैय बची है " शादियां " ?
हमने हमारे घर मे देखा होगा, छोटे हमारी कैसे नकल करतें है। वैसेही मुआशरे, समाज मे आप बड़े है। जाहीर है आपकी नकल तो होगी ही।
भाईओ अल्लाह ने आपको खास, रुतबेदार और दौलतमंद बनाया है, आप अपने अरमान पूरे करने के चक्कर मे आम आदमी फस कर यही सही है, समझकर आपकी नकल कर रहा है या मजबूर किया जा रहा है।
ये रीति-रिवाज आसमान से नही आये है। ये आप हम जैसों की एजाद है। आसमान से तो सादगी आयी।
मुझे यकीन है, बड़ों ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए एक मिसाल पेश की तो छोटों को राहत भरी एक गाईड लाईन मिलेगी।
इंतेखाब फराश
मॅरेज काउंसलर
फ़ैज मॅरेज ब्यूरो
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