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faiznikah.com Assalaam Walekum and Rahmatullah Barkathu Friends Haji Mehmed Isaac Farash Foundation Pune is a registered organization. Under this, along with Primary School, Sartaj Library, Roti Bank, Marriage Bureau, the marriage should be done with the right time and simplicity, the work of counseling has been going on continuously for the last 13 years.Of course, the best Mu'ashera begins with the best marriage.Allah Subhanu and Tala have made the Faiz Marriage Bureau a means of connecting the relationships above 5600 till date. Our responsibilities have been giving their valuable time for the well being and betterment of the shelter along with handling their domestic responsibilities well.So far, successful relationships have been organized in 15 districts of the Faiz Marriage Bureau.In every procession, according to their wishes, a vow is made not to eat the food of the girl's house in the marriage.As of now the offices are running in Aurangabad, Sangamner, Solapur and Head Office Pune.

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जानबूझकर कर्ज न देने वाला चोर है

जानबूझकर कर्ज न देने वाला चोर है
         दोस्तो, अक्सर देखा गया है, जब हम किसी दोस्त, रिश्तेदार या जानपहचान वाले को, उसकी मुसीबत के वक्त पैसे देकर मदत करतें है। उस वक्त वो शख्स बड़े अज़ीज से आपका शुक्रिया अदा कर के एक वक्त तैय कर देता है, की इस तारीख तक सारे पैसे लौटा देगा। मगर तैय वक्त निकल जाने के बाद भी उधारी की कोई रकम अदा नही की जाती। आहिस्ता आहिस्ता मिलना-जुलना और बातचीत बंद हो जाती है।
         देखने से लगता है, सब ठीक ठाक है। खा-पी, घुम-घाम रहें है। हर चीज मुक्कमल अदा हो रही है।मगर हमारा कर्जा अदा नही हो रहा है।
          लेकिन दोस्तो, ये आधा सच है! इसका दुसरा पहलू कुछ इस तरह से हो सकता है। अपनी कमाई के हिसाब से, उसकी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी जैसे तैसे चल रही थी। फिर अचानक कोई मुसीबत आ गई, और आप एक सच्चे दोस्त की तरह उसके पिछे खड़े होकर उसकी मदत की। आपकी मदत से उसका मसला [ प्रोब्लेम ] हल हुआ। कमाई तो वैसी के वैसे हि रही और बाकी मसले तो हमारी ज़िन्दगी की तरह उसको भी दिन ब दिन आते ही रहे। और हमारी तरह वो भी उसी प्रोब्लेम मे उलझकर उसे सुलझाने की कोशिश मे लगा रहा।
          आपसे बात और मुलाक़ात न करने की सबसे बड़ी वज़ह उसका ज़मीर होता है। ज़मीर की आवाज बार बार उसे ऐहसास दिलाते रहती है, इसने हमारी बुरे वक्त पर मदत की है, उसके पैसे लौटाना चाहिए, मगर हालात के आगे मजबूर वो मुँह चुकाते रहता है। और हम कहतें है, देखो कितना बेगैरत इन्सान है।
        दोस्तो, जब हम सच्चे दिल से इरादा और अदायगी की निय्यत करे, कर्ज लेनेवाले से बात कर कर्ज को एकदम छोटे छोटे किश्तों मे देना शुरू कर दे। हम खुद और परिवार के सभी लोंगो ने एक होकर ठान ले तो, अल्लाह ताआला की मदत भी मिलेगी। और हम कर्ज से निज़ात पा सकते है। सर पर कर्ज हो तो हर सुखचैन खत्म हो जाता है है। दुनिया तो बर्बाद होती ही है, साथ ही साथ आख़रत मे भी राहत नही मिलती।
        इस्लाम और हदिस मे कर्ज के बारे मे बड़ी सक्ती से बया किया गया है। इस्लाम मे सब से ज़्यादा और ऊंचे दर्जेपर शहिद का मर्तबा है, मगर दोस्तो इतना बड़ा मर्तबा होने के बावजूद उसकी तबतक मगफिरत नही होगी, जबतक उसके कर्ज की अदायगी / भुगतान न किया हो। और एक जगह अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा है :-" अगर कोई कर्ज ले और लौटाने की निय्यत ना हो। या जानबूझकर कर कर्ज की अदायगी ना करता हो तो वो विश्वासघातकी और चोरी है।"
           एक हकीक़त- एक बार कर्ज देने वाला कर्ज वापस लेना भूल सकता है, मगर कर्जदार कभी भी भूल नही पाता। उसे उसका ज़मीर / अंतरात्मा कर्जदार होने का ऐहसास दिलाते रहती है।दिलो-दिमाग मे हमेंशा कर्ज एक काँटे की तरह हरदम चुबता रहता है। अल्लाह तआला हम सब को कर्जदार होने से बचाए। आमीन

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: गंदी सोच

: गंदी सोच
          दोस्तो, बारहा देखा गया है, जब मियां-बीवी के आपसी झगड़े हमारे सामने आते है तब दोनों अक्सर एक बात पर जोर देती है की इनकी सोच गंदी है। इनके हिसाब से पराया मर्द या औरत से वक्त बेवक्त मिलना, उनसे घन्टों बात करना, ऑफिस या कारोबार के नाम पर घर से देर तक गायब रहना और सबब पूछने पर सर ना पैर की दलील देना। सब से अहम बात सामने वाले के कपड़े, बर्ताव और नज़र बेहूदा और शर्मसार करने वाले होते है।
           अभी भाईओ, अच्छी सोच क्या होती है? बेहयाई दिखाई देते हुए भी उसपर कुछ भी ना बोलना, उसका हंसकर मंजूर कर लेना, ही शायद अच्छी सोच कहलाई जाती है!
           पिछले दिनो नोबल विजेता मुस्लिम खातून ने हिजाब के सिलसिले मे बड़ी खूब कहा वो कहती है, " इंसान शुरूआती दिनों मे पेड़ के पत्तो से अपनी शर्मगा ढंका करता था। और जैसे जैसे उसका विकास होते गया, वैसे  वैसे जानवर…
[5:15 pm, 26/2/2025] Dady: गंदी सोच
          *दोस्तो, बारहा देखा गया है, जब मियां-बीवी के आपसी झगड़े हमारे सामने आते है तब दोनों अक्सर एक बात पर जोर देती है की इनकी सोच गंदी है। इनके हिसाब से कपड़े और उसे पहनने का तरीक़ा गलत होता है।पराया मर्द या औरत से वक्त बेवक्त मिलना, उनसे घन्टों बात करना, ऑफिस या कारोबार के नाम पर घर से देर तक गायब रहना और इन हरकत पर सवाल पूछने वाले की सोच गंदी सोच समझी जाती है।
           फिर अच्छी सोच क्या होती है? बेहयाई दिखाई देते हुए भी उसपर कुछ भी ना बोलना, बेहूदा कपड़ों को आजका फॅशन ही तो है! इनके हर नाजायज कामो को हंसकर मंजूर कर लेना, ही शायद अच्छी सोच कहलाई जाती है!
           पिछले दिनो नोबल विजेता मुस्लिम खातून ने हिजाब के सिलसिले मे बड़ी खूब कहा वो कहती है, " इंसान शुरूआती दिनों मे पेड़ के पत्तो से अपनी शर्मगा ढंका करता था। और जैसे जैसे उसका विकास होते गया, वैसे  वैसे जानवर की खाल फिर कपड़े। और आज इंसान तरक्की विकास के आला मकाम [ Supreme Position ] पर है और ये हिसाब उसी तरक्की की निशानी है।

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खाँहिश-ए-तकमिल

खाँहिश-ए-तकमिल
               पिछले दिनों चलाए गए रमज़ान से पहले निकाह इस 21 दिन के कैम्पेन मे अल्हम्दुलिल्लाह, चार निकाह तो आम निकाह की तरह से हुए, एक निकाह आज बाद जुमे की नमाज़ के बाद मदीना शरीफ के एक मस्जिद पढ़ाया गया।
               जब मां और बेटा पहली बार www.faiznikah.com की ऑफिस आये, तभी उन्होेंने रमज़ान के महिने मे, उमरे के दौरान मदीना शरीफ मे निकाह करने की शर्त रखकर ही फार्म भरा था।
               मै- इंशाअल्लाह क्यों नही, करने वाली जात अल्लाह की है, हम तो ज़रिया है। मगर एक बात मै अभी कह देता हूँ के लड़की और उसके मां-बाप के उमरे का खर्च आपको करना होगा। उनको सब मंजूर था। बात ये थी के 2019 मे लड़के के मां-बाप हज़ के लिए गए थे। हज़ के दौरान वे एक निकाह मे शरीक हुए थे। तभी मियां-बीवी ने तैय कर लिया था के अपने लड़के का निकाह इधर ही करेंगे। तब लडका इंजीनियरिंग के दुसरे साल मे पढ़ाई कर रहा था। फिर कोविड की महामारी मे वालिद का इंतेक़ाल हुआ। अब्बा की तमन्ना जब लड़के को पता चली तो, मां-बेटे ने ठान ली के निकाह होगा तो मदीना शरीफ मे ही होगा।
                अल् मुक़्तदिर [ बड़ी कुदरत वाला] ने रास्ते आसान कर दिए। नेक काम मे गैबी मदत जरूर पहुंचाई जाती है। और निकाह हो गया।
               बारकल्लाहु-लकुम वबा-र-क- अलैकुम व-ज-म-अ बै-न कुमा-फी ख़ैर। 8 (सहीह)
                [ अल्लाह तुम्हें बरकत दे और तुम पर बरकत दे और तुम दोनों के बीच भलाई में इत्तिफाक दे। ] आमीन।

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रमज़ान के पहले निकाह

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